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तिब्बत की ओर खिसक रहा भारत, भूकंप कर रहे इस ओर इशारा


Lucknow:भूकंप के हल्के झटके एक तरह से लाभप्रद हैं क्योंकि इनसे धरती के भीतर की अतिरिक्त एनर्जी निकल जाती है। उत्तर भारत में भूकंप का मुख्य कारण टेक्टोनिक प्लेट्स का 55 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की गति से तिब्बत की ओर खिसकना है जिस कारण प्लेट्स के टकराने से जो एनर्जी निकलती है वह भूकंप का कारण बनती है। इस दृष्टि से नेपाल का बजांग क्षेत्र बेहद संवेदनशील है जहां प्रतिदिन छोटी तीव्रता के भूकंप आते हैं और कभी बड़ा भी आ सकता है। कुमाऊं विश्वविद्यालय में वरिष्ठ भूवैज्ञानिक प्रो. चारु चंद्र पंत ने यह जानकारी देते हुए बताया कि उत्तराखंड नेपाल के बजांग से होकर गुजरने वाला मेन सेंट्रल थ्रस्ट मुनश्यारी, कपकोट,बैजनाथ, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, उत्तरकाशी होते हुए चमोली तक जाता है। इस कारण यह इलाका बहुत ज्यादा संवेदनशील है जो भूकंप के जोन 5 में पड़ता है। भूवैज्ञानिक ने बताया कि इस क्षेत्र में बीते दस हजार वर्षों में, जो कि होलोसीन युग कहलाता है, बड़े भूकंपों के प्रमाण मिले हैं जो खासकर नदियों के किनारों के टेरेस में अंतर के रूप में उपलब्ध हैं। हांलांकि गत 200 वर्षों में बड़ा भूकंप नहीं आया है जो कि अतिरिक्त सावधानी बरतने का संकेत भी है क्योंकि पृथ्वी के भीतर अतिरिक्त एनर्जी जमा हो ही रही है। जागरूक और सावधान रहना ही एकमात्र उपाय प्रो. पंत ने बताया कि हिमालयी क्षेत्र अब तक स्थायित्व प्राप्त नहीं कर पाया है और भूकंपीय दृष्टिकोण से संवेदनशील है।प्रो. पंत ने बताया कि तिब्बत की ओर खिसक रहा भारत का भाग उसमें समा नहीं पा रहा है जिस कारण भूगर्भीय टेक्टोनिक प्लेट्स की हलचल और तीव्र हो जाती है। प्रो. पंत ने कहा कि भूगर्भीय हलचल को न तो रोका जा सकता है न ही भूकंप का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है इसलिए इसके प्रति जागरूक और सावधान रहना ही एकमात्र उपाय है। उन्होंने कहा कि विश्व के तमाम देश इस दृष्टिकोण से संवेदनशील हैं जिनमें जापान, इंडोनेशिया, पैसिफिक क्षेत्र के देश, जर्मनी, स्विटजरलैंड, ईरान, इराक सहित पाकिस्तान से अफगानिस्तान जाने वाला चमन फाल्ट के क्षेत्र शामिल हैं। विकसित देशों ने निर्माण से लेकर आपदा प्रबंधन की उच्च तकनीक अपना कर इससे होने वाली क्षति को कम करने में सफलता प्राप्त की है। पहाड़ी भवन निर्माण तकनीक है भूकंपरोधी उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पत्थरों से निर्मित होने वाले भवन भूकंपरोधी थे। इनकी दीवारों के बीच में लकड़ी के तख्ते डालने से यह और भी सुरक्षित हो जाते थे जिनके गिरने का खतरा और भी कम हो जाता है। यह अफसोस कि बात है कि आधुनिकता की दौड़ में अब यह तकनीक ही समाप्त हो चुकी है। सुदूरवर्ती गांवों में भी लेंटर वाले भवन बन रहे हैं। प्रो चारु पंत का कहना है कि लेंटर वाले भवन में भी केवल एक अतिरिक्त सरिया के उचित प्रयोग से भूकंप में भवन के गिरने का खतरा कम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि खिड़की व दरवाजों की चौखट के ऊपर एक या दो सरिया की बीम से भवन के गिरने के खतरे को बहुत कम किया जा सकता है। पाइंस से अयारपाटा तक महसूस किए गए झटके सरोवर नगरी में मंगलवार की शाम पाइंस लेकर अयारपाटा तक भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गए। इस दौरान हालकि कहीं भी जानमाल के नुकसान की खबर नहीं है, अलबत्ता कई लोग घरों से बाहर भी निकल आए। पाइंस निवासी मनमोहन त्रिपाठी ने बताया कि चंद सैकेंड के लिए ही भूकंप का झटका महसूस किया गया। तल्लीताल निवासी देवेंद्र सिंह व मोहन सिंह ने भी भूकंप के झटके को महसूस किया। मल्लीताल निवासी किशन सिंह और उनके साथ बैठे लोगों ने भी धरती के डोलने की आहट महसूस की। वहीं अयारपाटा निवासी और कुविवि के सूचना वैज्ञानिक युगल पंत ने भी झटके को महसूस किया। जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी शैलेश कुमार ने बताया कि शाम 7:01 बजे के आसपास भूकंप के झटके महसूस किए गए। जिसका केंद्र नेपाल में और तीव्रता 5.1 आंकी गई है।
Dastak Times